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कर्मग्रन्थस्य टा.
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खीणेसिलागतइए, एवं पढमेहिं बीययं भरसु । तेहिं तइयं तेहिय, तुरियं जा किर फुडा चउरो ७९ ॥
अर्थ - सिलाका खाली थाय तिवारें एक दांणो वळी प्रति सिलाकपल्य मांहे मुकीजे, इम अनवस्थितें करी सिलाका भरी, सिलाका खाली करी एक दांणो प्रतिसिलाकामांहे घालीजे इम करतां प्रतिसिलाका भरीजे, ते प्रतिसिलाका उपाडीजे इमही जे द्वीपें समुद्रे खाली कीजे तिबारे एक दांणो महासिलाकामांहे घालीजे वळी नवनवा अनवस्थितें करी सिलाका भरीजे, सिलाका खाली करी एक दांगो प्रतिसिलाकामांहे भेळीजे, इम अनवस्थिते करी सिलाका भरीजे, सिलाका करी प्रतिसिलाका भरीजे, प्रतिसिलाका खाली करीने एक महा सिलाका कण घालीजे इम अनवस्थितेथी सिलाका भरीजे, सिलाका प्रतिसिलाका भरीजे, प्रतिसिलाकाथी महासिलाका भरीजे, इम च्यारे पल्य भराय ए प्ररूपणायी जाणवो. ॥७९॥ पढमतिचल्लुद्धरिआ, दीवुदही पल्लचउसरिसवाय । सबोबिसरासी, रूचूणो परमसंखिजं ॥ ८० ॥
अर्थ- हवे ते सर्व त्रिये ३ पल्यें करी नसंख्या हता, जे सरसव ते सर्व मेळा कीजे अने लाख लाख जोजनना ३ पल्य वळी अनवस्थितनाए ४ पल्यना सरसवना वळी भरी मांहे नांखीजे तिबारे ते भेळा ढिग कीजे ए सर्व रासी एकठी थाय तिवारें रासीमांहीथी एक सरसव काडीजे, तिवारें उत्कृष्टो संख्यातो थाय ॥ ८० ॥
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