________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कर्मग्रन्थस्य टबार्थः
६६५
गुणठाणे त्रण झान, त्रण दर्शन, एम छ मतिज्ञान १, श्रुतज्ञान २, अवधिज्ञान ३, चक्षुदर्शन ४, अचक्षुदर्शन ५, अवधिदर्शन ६ उपयोग छे, मिश्र गुणठाणे एहीज ६ उपयोग छे, अज्ञानसहीत छे, अने छठे गुणठाणासुमांडी बारतांइ ७ सात गुणठाणे च्यार ज्ञान तीन दर्शन ए सात उपयोग छे. तेरमे चौदमे गुणठाणे केवलज्ञान १, केवलदर्शन २, ए दोय उपयोग छे. ॥५१॥ हवे सिद्धांत अने कर्मग्रंथे जेम भेद छे ते कहे छेसासण भावे नाणं, विउव्वगाहारगे उरल मोसं। नेगिंदिसु सासाणो, नेहाहिगयं सुयमयंपि ॥५२॥
अर्थ-सिद्धांतमे सास्वादन गुणठाणे ज्ञान कह्यो छे, इहां सास्वादनमे अज्ञान कहे छे, अने वैक्रिय, आहारक शरीर नवो. करतां मूळगे औदारिक शरीरे मिश्रता थाप छे पण इहां न मान्यो छे, अने सिद्धांतमे एकेन्द्रियमे सास्वादन गुणठाणो नहीं कह्यो छे, इहां कोइ उपशम समकीत वमतो सास्वादनपणो पामे, ते एकेन्द्रीयमे उपजे, तिणे एकेन्द्रीयमे सास्वादन थाय, एटले बोले सिद्धांतना वचननो अधिकार कीधो नथी, ते इहां पूर्वानु, योग मुख्य छे तिणे न कह्यो छे. ॥५२॥
हवे लेश्या कहे छे--- छसु सवा तेउ तिगं, इन छसु सुक्का अजोगिअल्लेसा। बंघस्स मिच्छ अविरइ, कसायजोगतिचउहेऊ॥५३॥
अर्थ-छ गुणठाणामे छ लेश्या छे, अने एक सातमे गुणठाणे तेजो, पद्म, शुक्ल ए नीन ३ लेश्या छे, अने आठमा
84
For Private And Personal Use Only