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कर्म्मग्रन्थस्य टबार्थः
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अर्थ -- मनोयोगी थोडा छे, सन्नीजीव ग्रह्या छे, वचनयोगी असंख्यात गुणा बेन्द्रीयादिक सर्व जीव ह्या छे, वचनयोगीथी काययोगी अनंतागुणा छे, एकेन्द्री सर्व गण्या छे, पुरुषवेदी थोडा छे पुरुषवेदथी स्त्रीवेद संख्यात गुणा छे. जे तिर्यच में त्रिगुणी स्त्री छे. तीन वळी अधिकी मनुष्यमे २७ गुणी छे अने २७ वळी अधिकी छे देवता ३२ गुणी छे बत्रीस अधिकी छे. स्त्रीवेदीसुं नपुंसक अनंतगुणा छे. एकेन्द्रीयादिक सर्व लेवा ॥४२॥ माणी कोही माई, लोभी अहिअमणनाणिणोथोवा । ओहि असंखामइसुअ, अहिअसम असंख विप्रभंगा | ४३ |
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अर्थ -- कषायमे मानकषायी थोडा छे, मानकषायीथी क्रोधीसुं मायावी कपटी अधिका छे. मायाकषायीथी लोभी अधिका छे, मनः पर्याय ज्ञानी थोडा छे जे मनः पर्यायज्ञान मनुष्य साधुमेज होवे. मनः पर्यायज्ञानीथी अवधिज्ञानी असंख्यात गुणा छे. जे च्यारगतिमे समकिते सर्व जीव छे. अवविज्ञानीथी मतिज्ञानी श्रुतज्ञानी अधिका छे, जे च्यार ४ गतिना समकिती सर्व लेवा अने मति श्रत दोनुं बराबर छे. तिथी विभंग ज्ञानी असंख्यातगुण छे. मिथ्यात्वी देवता नारकी सर्व बीजा पण तीणथी ॥ ४३ ॥
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केवलिणो णंतगुणा, मइसुअ अन्नाणि णंतगुणतुला । सुहमाथोवा परिहार- संख अहखाइ संखगुणा ॥ ४ ॥ अर्थ--- केवली अनंतगुणा छे. सिद्ध भगवंतमांहे गण्या . तिणथीमति अज्ञानी श्रुतअज्ञानी अनंतगुणा छे. एकेंद्रीयादि सर्व लेवा मांहोमांही बराबर छे. सूक्ष्मसंपराय चारीत्रीया थोडा
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