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कर्मग्रन्थस्य टबार्थः
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वचनयोग पूर्वे कह्यो ते मनोयोग सहीत पण ग्रह्यो छे. इहां मनोयोग विना ग्रहे छे तिणे जीवभेद ८, बेन्द्री २, तेन्द्रीना २, चोरेन्द्री २, असन्नी २, ए आठ ८, छे जे सन्नीमे वचन छे परं इहां न गण्या जे मुख्यता वचनयोगनी छे. गुणठाणा बे छे मिथ्यात्व १, सास्वादन २, योग ४ च्यार के चौरेन्द्रीने कह्या ते ते पण उपयोग ४, च्यार छे ते इहां वचनयोग मनोयोग विना ग्रह्यो छे. काययोग पूर्वे वचनसहीत मनसहीत लीधा छे. इहां एकलो काययोग लीधो ते तो एकेन्द्रीने हवे तिणे जीवभेद ४, च्यार एकेन्द्रीना योग पांच उदारिक बे, वैक्रीय बे, कार्मण १, गुणठाणा बे, मिथ्यात्व १, सास्वादन उपयोग तीन, बे अज्ञान, १ अचक्षुदर्शन एवं ३ छे, श्रुतांतर २ छे, अन्य आचार्य इम कहे छे. ॥ ३८ ॥ छसुलेसासु सठाणं, एगिदि असन्निभूदग वणेसु। पढमा चउरो तिन्निय, नारय विगलग्गिपवणेसु॥३९॥ ____अर्थ-हवे बासठ मार्गणाए लेस्या कहे छे-तिहां छ लेस्या ६ मे आपआपणी लेस्या छे. कृष्णमे कृष्ण १, नीलमे नील २, कापोतमेकापोत ३, तेजमेतेज ४, पद्ममेपद्म ५, शुक्लमेशुक्ल ६ छे. ___ एकेन्द्रीमे १, असन्नीमे १, पृथ्वीकाय १, अप्काय १, वनस्पतिकाय १, ए पांच मार्गणामे पेहेली च्यार ४, ते कृष्ण १, नील २, कापोत ३, तेज ४ ए च्यार लेस्या छे. नरकगतिमे १, बेन्द्रीमे १, तेन्दीमे १, चौरेन्दीमे १, अग्निकायमे, वायुकायमे ए छ ६ मार्गणामे पेहेली तीन लेस्या छे, कृष्ण १, नील २, कापोत ३. ॥ ३९ ॥
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