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कर्मग्रन्थस्य टबार्थः एहने-उद्योत १,तिर्यंचगति १, तिर्यचआनुपूर्वि १, तिर्यच आउखो ए ४ काढीजे; तिवारे सताणु ९७ वेरो सामान्य छे. ९६ मिथ्यात्वे छे.बाएं सास्वादने, सितेर मिश्र गुणठाणे, ७२ समकीत गुणठाणे, जिम अपर्याप्तें तिर्यचमे १०९ एकसो नव प्र० नो बंध सामान्ये अने मिथ्यात्वे कह्यो. तिमहीज एकसो नव प्रकृतिनो बंध १०९ नो बंध एकेन्द्री मार्गणा १, पृथ्वीकाय मार्गणा अप्काय मार्गणा, वनस्पतिकाय मार्गणा, बेंगी मार्गणा, तेंद्री मार्गणा, चौरेंद्री मार्गणा. इतली मार्गणामें एकसो नवनो सामान्य छे. एकसो नव मिथ्यात्वमें जाणवी. ॥ १२ ॥ छनवइ सासणि विणुसुहुमतेरकेइपुणबितिचउनवइ। तिरिअनराउहि विणा, तणुपज्जत्तिं न जंति जओ १३
अर्थ-सास्वादन गुणठाणे छन्नुनो ९६बंध छे. सूक्ष्मादिक तेरे काढीजे-सूक्ष्म ३, विगल ३, एकेन्द्री १, थावर १, आताप १, नपुं १, मिथ्यात्व १, हुंडक १, छेवठो १. ए १३ काढीजे. कोइक आचारज सास्वादन गुणठाणे ९४ चोराणुं कहे छे. तिरजंच मनुष्यनो आउखो ए बे काढीजे जे कांइ एकेन्द्रि, बेंद्री, तेंद्री चौरेन्द्री जीव सास्वादन गुणठाणे पूर्व भवथी लीधां आवे छे, ते आहारपर्याप्त तांइज सास्वादन भावमें वरते पछी शरीर पर्याप्त. मिथ्यात्व गुणठाणामें करे तेणे आउखो कोइ न बांधे तिणे सास्वादनमें चोराणुंनो बंध कहेवो. ॥१३॥ ओहुपणिदितैसे गइ, तसे जिणिकार नरतिगुच्चविणा। मणवयंजोगे ओहो, उरले नरभंगु तम्मिस्से ॥१४॥
अर्थ-पंचेन्द्रि मार्गणा त्रसकाय मार्गणाने ओघे सास्वाद
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