________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
MarAAAAA
arrowrorrrrrru
कर्मग्रन्थस्य टबार्थः नरअणुपुविविणावा, बारसचरमसमयम्मि जो खविओ पत्तो सिद्धिं देविंद-वंदिअं नमह तं वीरं ॥३४॥ ... अर्थ-हवे मतान्तर कहे छे. मनुष्य आनुपूर्वि पहेलाइज काढीजे; तिवारे बाकी बार ज रहे ते चरमसमये खपावे जिवारे सर्व कर्म खपावी मोक्ष पहोचे, अकर्मा थइ सिद्ध मोक्षगति पहोचे एहवा श्रीमहावीरस्वामी इणि अनुक्रमे मोक्ष पहोत्या. देवेन्द्र महाराजा अने देवेन्द्रसूरि आचार्य नम्यो एहवा महावीर भणी वांदं छं. ॥३४॥
इति श्रीद्वितीयकर्मग्रन्थटबार्थ समाप्त ॥२॥
४८
For Private And Personal Use Only