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ध्यानदीपिकाचतुष्पदी.
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एवंभूतक नय लीधो, पूरव पटनयसुं सिद्धो रे; निज० इक इकना सत सत भेद, जाणे ज्ञानी गतखेदो रे. निज० २० सूक्ष्म उत्तरोत्तर छ, तिमहीज कारण; कारज छे रे; निज० साते नय इक सदहीये, तदि सम्यग्ज्ञानी कहीये रे. निज० २१ इक इक भंगे सग नय छे, नयविष्णु भंगा शिवमै छ रे; निज० अक्षरत्रय गुण जब व्यावे, तब देवचंद्रपद पावे रे. निज० २२
दहा. इक प्रत्यक्ष परोक्ष बन, छे प्रमाण द्वे रूप; मति श्रुत ज्ञान परोक्ष, केवल परतिष भूप. मनःपर्य अरु अवधिगण, देसत परतष जाण; अनुमानादिक भेद सहु, जाणि परोक्ष प्रमाण. क्षीणमोह गुणठाणा लगि, सम्यग्ज्ञानी जीव छउमत्थ चोनाणी भणी, ज्ञान परोक्ष सदीव. निक्षेपा चोविध कह्या, नाम थापना दर्वः
भावनिक्षेपो मुख्य छे, अंशे साचो सर्व. निर्गुण गुणयुत वस्तुनी, संज्ञा करवी जाय; नामनिक्षेपो जेमको, नामे केवल थाय. थापीजे ते थापना, जैनबिंब जिनरूप; द्रव्यनिक्षेपो बाह्यरत, द्रव्यलिंगनो भूप. गुण यथार्थधारी प्रवर, मुख्यादेय सदीव; भावनिक्षेपो ते कयो, जे चेतनलक्षण जीव. नय प्रमाण निक्षेप विधि, नही सिद्धमे एहः द्रव्यार्थिक पर्याययुत, सिद्ध शुद्ध गुणगेह,
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