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ध्यानदीपिकाचतुष्पदी.
सुखसंपद सुरधामनी, उपमा कही न जाय; पंचरंग मणी चैत्यगृह, वन वापि तिहां थाय. ९ गढ परिष्या तोरण सहित, पोलि चैत्यमणीरूप; सामानिक तनुरक्षकर, सग अनीक इक भूप. थिरश्रृंगार सुपीन कुच, शशीमुख सुरनी नारि; कामकेलि गुणआगरु, लक्ष्मीने अनुहारि. सुंदर गुण अणिमादियुत, भूषणयुत मतिधीर
पंडित विनय सुजाण नर, जसु अम्लान शरीर. १२ हाल---थारा म्होला उपर मेह झरूषे दामनी. हो लाल
झरोषे दामनी. एहनी ॥ नही य दुषी को रोग को तिहां दीन छे हो लाल, नको. थिर शोभा छे जास वास सुखमे अछे हो लाल; वास. सभ्य समानिक मंत्रलोक तनुपाल छे हो लाल, लोक० गायन नटूया एम विविध सुरमाल छे. विवि० १ देवलोक सुखओक सदा सुखमे रमे हो लाल, सदा० शीलरूप गुणवंत सहज मनमे गमे हो लाल; सह. नितनित नवनव रंग गीत जयजय सदा हो लाल, गीत. सातधातु गुण देहरूप सुखकर मुदा हो लाल. रूप० २ अतिसुकुमाल शरीर चतुर पंडितवरू हो लाल, चतु० दोष क्लेश भयहीन शांत जिम निशकरू हो लाल; शांत० ३ महारिद्धि गुणवंत जिहां सुर अति घणा हो लाल, जिहां बेठा सभा मोझार इंद्र सरीमा बण्या हो लाल, इंद्र० पुण्यउदे लहे सुख सदा मन ऊमहे हो, सदा० देवलोकनी भूमि सदा सुष गुण गहे हो लाल. सदा० ४
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