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ध्यानदीपिकाचतुष्पदी.
जो चाह नारी तणी तुजने साधि पूरण नाडिका, रिपुयुद्ध चोरी दुष्टकाजे सहो रिक्ता नाडिका ; रिपु वाउसेती पूर्ण नाडी गात्ररक्षा जे करे, तसु अंग बीजे शस्त्र न लगे सर्व रिपुमे जय वरे. भूजल मे रे गर्भप्रश्नी सुत लहे, अग्नि पवने रे पुत्री गर्भने नभ दहे; अनाडी रे पृच्छक जो बेसे सही, सुत पामे रे रिक्ता नादि पुत्री कही; कही पुत्री समुष नाडी षंढ उतपति जाणवी, सुष्मणानाडे युगलसंक्रम गर्भहाणि वषाणवी; भवण, आषी अरु नासिका भुष ढांकी अंगुष्टादिथि, जे वामवेला चले दक्षिण अंग पीडा तो कथी. हां० अंग० १३
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विष घूम्या रे जीवे चंद्र नाडी करी,
रवि नाडे रे तेह मरे विष विस्तरी आकर्षण रे पूरक थिर कुंभक धरे, उथान रे रेचकथी योगी करे;
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शशि थानकरे वाम अग्रिम नाडी कही, रवि थान करे दक्षिण पूठ नाडी लही; संक्रमतो रे पवन जीव पंडित कहे, विक्रमतो रे वेह पवन निरजीव हे; निरजीव पवने जगत मृतसम जीव पवने जीवतो,
सुष दुख लाभालाभ फल पिण कहो इण विधि दीपतो; जे नाडि छोडे तिका रिक्ता पूर्ण संक्रम अवसरे, पूर्णांग पग जे धरे आगे सर्व कारिज तसु सरे. हां० सर्व ० १३४
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