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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५३८ ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. जो चाह नारी तणी तुजने साधि पूरण नाडिका, रिपुयुद्ध चोरी दुष्टकाजे सहो रिक्ता नाडिका ; रिपु वाउसेती पूर्ण नाडी गात्ररक्षा जे करे, तसु अंग बीजे शस्त्र न लगे सर्व रिपुमे जय वरे. भूजल मे रे गर्भप्रश्नी सुत लहे, अग्नि पवने रे पुत्री गर्भने नभ दहे; अनाडी रे पृच्छक जो बेसे सही, सुत पामे रे रिक्ता नादि पुत्री कही; कही पुत्री समुष नाडी षंढ उतपति जाणवी, सुष्मणानाडे युगलसंक्रम गर्भहाणि वषाणवी; भवण, आषी अरु नासिका भुष ढांकी अंगुष्टादिथि, जे वामवेला चले दक्षिण अंग पीडा तो कथी. हां० अंग० १३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष घूम्या रे जीवे चंद्र नाडी करी, रवि नाडे रे तेह मरे विष विस्तरी आकर्षण रे पूरक थिर कुंभक धरे, उथान रे रेचकथी योगी करे; ૮૬ शशि थानकरे वाम अग्रिम नाडी कही, रवि थान करे दक्षिण पूठ नाडी लही; संक्रमतो रे पवन जीव पंडित कहे, विक्रमतो रे वेह पवन निरजीव हे; निरजीव पवने जगत मृतसम जीव पवने जीवतो, सुष दुख लाभालाभ फल पिण कहो इण विधि दीपतो; जे नाडि छोडे तिका रिक्ता पूर्ण संक्रम अवसरे, पूर्णांग पग जे धरे आगे सर्व कारिज तसु सरे. हां० सर्व ० १३४ For Private And Personal Use Only १२.
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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