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ध्यानदीपिकाचतुष्पदी.
निर्दय परस्त्रीलंपट, सबभक्षी अतिदुष्ट; मुनिनिंदक नास्तिकमति, निजसंगी गुणभ्रष्ट. एहवा जनने संग पणि, रहे मध्यता साहि; तेह अपेक्षा भावना, कही जिनागममांहि.
ढाल-धणरी बिंदली रंग लागो. एहनी. हारे मोरा लाल आनंद कर एभावना, रागहीन शिवमाग मोरा लाल; आत्मसौख्य मुनि अनुभवे, रमतो भावन वाग मोरा लाल. १ भावो जे गुणभावना, अध्यातमगुणरूप मोरा लाल; निरविषयी ज्ञानी मुनिः परमातम सुष भूप मोरा लाल. भावो० २ हारे० मोह मिटे ए भावतां, योग ध्यान थिर थाय मोरा लाल; परम सौख्य मुनि भोगवे, उदासीनता रोग मोरालाल. भावो० ३ हारे० निरागी मुनि एकता, ग्रहे ध्यान थिर काज मोरा लाल; निच ऊंच कुण ध्यान छे, साधन ध्यान समाज मोरा लाल भावो० ४ हारे० ठाम दोषथी चित्त ए, तुरत थाय सविकार मोरा लाल; तेह ठाम एकांत लहि, थाये शांत सुषकार मोरा लाल. भावो० ५ हारे० पाषंडी मिथ्यामति, म्लेच्छ नीच जिहां राय मोरा लाल, रौद्र भूत देवीतणो, नास्तिक मंदिर थाय मोरा लाल. भावो० ६ हारे० वेश्या व्यमिचारी वली, जिहां कुग्रंथ वंचाय मोरा लाल; मानी दुशीली जिहां, नट विट मेला थाय मोरा लाल. भावो० ७ हारे० कामी भील चंडालनो, राक्षस हिंसाधाम मोरा लाल; जूवारी मदपाननो, जे चीतारा ठाम मोरालाल. भावो० ८ हारे• नारी मनचलकारणी, वली नपुंसक गेह मोरा लाल; नीच करम कर गेहमे, न रहे ध्यानी जेह मोरा लाल. भावो० ९
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