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ध्यानदीपिकाचतुष्पदी.
राग अज्ञान वशे पड्यो, पामे भव दुष अपारो रे;
दृषद कंचन सम न मानो तो, बंधे बहु कर्मनो भारोरे. हिवे ० २५ सुष दुष परिणामे लहे, इष्ट अनिष्ट प्रभावे रे;
काम अर्थ लालच लगे ए, नव नव संकट जन पावे रे. हिवे ० २६ काम अरथ लालच तजो, ध्यावो जिनधर्म स्वभावो रे; निज अनुभव रस आदरो, ज्युं देवचंद पद पावो रे. हिवे० २७
दूहा.
हिवे केइ यम नियम वली, आसन प्राणायाम; प्रत्याहारने धारणा, ध्यान समाधि वसु नाम. यम नियमा द्वय टालिने, के अषे छे अंगः के मुनि बीजा छ कहे, उत्साहादिक चंग. ए कारण मन थिर भणी, थीर मनथी द्वे सिद्धि; क्लेशहीन मुनि मन दमे, यम नियमादिक लद्वि. अष्ट योग मन थिर करी, शिवमग साधक थाय; मन थिरी शिव लहे,
मन विकार संध्या लहे, मुनि अक्षय सुप छोडि; इण कारण मन वश करो, ज्युं नासे दुष कोडि. चित्त दम्यां निज गुण वधे, जन्म मरण भ्रम जाय; मन विणु जीते अफल सब, मन जीते शिव थाय. ७
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ढाल-नायकानी.
कुसल लाभ मन रोधथी रे, आतम तत्त्वनो लाभरे. सुगुण नर० आपा पर वंचे जिके रे लाल, निजमन थिरता साह रे. सुगुण० १
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