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ध्यानदीपिकाचतुष्पदी.
सापङस्पा सगवेग पीडयी तनु जले, काम तणा दस वेग ते गका नवि चलै; पहिला बांधे चित बीय दरसण इच्छे, मेल्हे तीय निसात तूर्य ज्वर आग छे. पंचम दाहे अंग रंगथी नवि जिमे, सप्तम मूर्छावंत कि उन्माद आठमे; नवमे प्राणसंदेह देह दसमे गमे, एह उदयथी चित्त तत्त्वमे नवि रमै. मन संकल्प विकल्प जल्पथी ए वढे, काम अगनि संताप हृदयपद ए कढे गिरवर गदर मूल गुहाश्रित जनतणा. मदन उतारे मान इणे जोत्या घणा. कामवशे स्त्रीदास मूंज राजा भयो, माव मुंडायो सीस भोज घोडो थयो; धीरज श्रुत चारित्त बटे इण संगथी, कालो भवियण वित्त एउट्रपरंगयी. बेठां सूदां मित्र कुटुंब मेलापर, तेह ना पामे सुख मानने तापसुं; धन लज्जा कुल्नास मा देषे नही, पीडित वाम विकार का लोगे सही. मूल्य यह दुःख जिवि दे सके, तेहती पीडा थाय मदन : 'गटे थके सुंदर देषी नारी साररदिः । गमे, का दह्यो लहे मृत्यु बर: गुण ते वमे.
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