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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Se Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीसर्वज्ञाय नमः ॥ ॥ अथ ॥ ॥ श्रीपंडितदेवचंद्रजीकृत ॥ आगमसार. भव्यजीवने प्रतिबोधवा निमित्ते मोक्षमार्गनी वचनिका कहे छे. तिहां प्रथम जीव अनादिकालनो मिथ्यात्वी हतो ते कालब्धि पामीने त्रण करण करेछे. तेनां नाम - पहेलं यथाप्रवृत्तिकरण, बीजुं अपूर्व करण, अने त्रीजुं अनिवृत्ति करण. तेमां पहेलुं यथाप्रवृत्ति करण कहेछे. १ ज्ञानावरणीय, २ दर्शनावरणीय, ३ वेदनीय, ४ अंतराय, ए चार कर्मनी श्रीस कोडाकोडी सागरोपनी स्थिति छे, तेमांयी ओगणत्रीस कोडाकोडी खपावे अने एक कोडाकोडी बाकी राखे, तथा १ नामकर्म, २ गोत्रकर्म, ए बे कर्मनी वीस कोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति छे, तेमांथी ओगणीस खपावे अने एक कोडाकोडी राखे, अने मोहनीय कर्मनी सत्तेर कोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति छे. तेमांथी अगणोतेर खपावे, बाकी एक कोडाकोडी शेष राखे । एवी रीते एक आयुकर्म वर्जीने बाकी साते कर्मनी एकपल्योपमना असंख्यातमा भागेन्यून एक कोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति राखे, For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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