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(१८) श्रीमद् समन्धि हमको जो कुछ मालुम था सो बतलाना हमारा फरज था सो हम कथंचित पालन किया यह हमारा सौभाग्य है इस लिये हमारी प्रसंसा की कोई जरूरत नहि मुजे लज्जित होना पड़ता है सो मालुम किजियेगा धर्म स्नेह सविशेष रखीयेगा, पत्रोत्तर शीघ्र दिजियेगा यहां के लायक काम हो सो लिखियेगा इति.
छपाच्या विनानां पुस्तको. (१) गुरुगुणपत्रिंशिका टबो. ( २ ) ध्यानदीपिका चतुष्पदी. (३) कर्मग्रंथ पांचनो टबो. (४) विचाररत्नसार पूर्ण. (५) प्रश्नोत्तर. (६) विचारसार मुळ-टीका अने टबो. (७) कर्मसंवेध प्रकरण. (८) प्रतिमापुष्पसिद्धि. (९) गुणस्थानाधिकार. (१०) द्रव्यप्रकाश. (११) बाहुजिनस्तवन टबो. (१२) वीर निर्वाणनी ढालो. (१३) पद्मनाभजिनस्तवन. (१४-१५-१६-१६) सिद्धाचलनां स्तवन. (१८) नवानगरस्तवन. (१९) ध्रुवपदरतवन. (२०) समवसरण स्तवन. (२१) कुंभस्थापनस्तवन (२२) सिझाचलस्तुति. (२३) वीशस्थानकाते. (२४) ज्ञानबहुमानस्तुति. (२५) गिरनारस्तुति. (२६) कागळ. (२७) पंचेन्द्रिय विषयत्यागपद. (२८) प्रभुरतुति. साधुपद. अन्यपद ए रीते त्रीश छपाच्या वगरना हता ते छपाच्या छे अने ते विनाना पहेला छपावेला हता ते पुनः शुद्ध करी छपावेल छे.
कइ शालमांच्या पुस्तको कथा गामा रच्यां.
संवत् १७७६ फागण सुदि त्रीजे मोटा कोट-मरोट-मां पोताना मित्र दुर्गादासना बोधार्थे आगमसारनी रचना करवामां आवी.
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