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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
भवमायोजनीयाः क्रियावत्वं पर्यायोपयोगिता प्रदेशाष्टकनिश्चलता एवंप्रकाराः संति भूयांसः अनादिपरिणामिका भवन्ति जीवस्वभावा धर्मादिभिस्तु समाना इति विशेषः ।
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अर्थ ॥ तेमज अस्तिपणो, नास्तिपणो, कर्त्तापणो, भोक्ता - पणो, गुणवंतपणो, असर्वव्यापिपणो, प्रदेशवंतपणो, इत्यादि अनंत स्वभाववंत द्रव्य छे तेमज तत्वार्थ टीकामध्ये परिणामिक भावना भेद वखाणतां कह्यो छे. पुनरपि आदि शब्दना ग्रहण करतां एम जणावे छे जे वस्तु अनंत धर्मवंत छे ते सर्व विस्तारी शके नही तो पण द्रव्य द्रव्यने विषे प्रवचनना जाण पुरुष जेम संभवे तेम धर्म जोडवा. तथा क्रियावंतपणो जे ज्ञानादिक गुण ते लोकालोक जाणवाने प्रति समये प्रवर्त्ते छे. श्री भाष्यकारें ज्ञानादि गुण ते करण अने तेज गुणनी प्रवृत्ति ते क्रिया जाणवी तथा देखवो ते कार्य एम धर्मास्तिकायादिकना सर्वे गुण ते त्रण परिणतियें परिणामी छे, ते माटे पंचास्तिकाय ते अर्थ क्रिया करे छे, ते क्रियावंतपणी जाणवो. सर्व पर्यायनो उपयोगीपणो ए पण जीव स्वभाव छे तथा प्रदेशाष्टकनी निश्चलता ए पण जीवनो स्वभाव छे. तिहां धर्माधर्म अने आकाश ए ऋण अस्तिकायना प्रदेश अनादि अनंतकाल अवस्थितपणे छे. पुद्गलने चलपणो सदा सर्वदा छे. पुनलपरमाणु तथा पुद्गलस्कंध ते संख्यातो काल अथवा असंख्यातो काल एक क्षेत्रे रहे पण पछे अवश्य चल थाय. तथा जीवद्रव्यने सकम संसारीपणे क्षेत्रथी क्षेत्रांतर गमन भवथी भवांतर गमनरूप चलता छे, ते जीवने सम्यक्दर्शन सम्यकज्ञान अने सम्यक चारित्रने प्रगटवे सर्व परभाव भोगीपणो निवारखे
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