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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
गुणपर्यायवद द्रव्यं एतत् पर्यायनयापेक्षया, अर्थक्रियाकारि द्रव्यं एतल्लक्षणं स्वस्वशक्तिधर्मापेक्षया । धर्मास्तिकाय - अधर्मास्तिकाय - आकाशास्तिकाय-पुंद्रलास्तिकाय - जीवास्तिकाय- कालश्चेति
अर्थ || हवे वली द्रव्यनुं मुख्यलक्षण कहे छे उत्पाद के० नवा पर्यायनुं उपजवुं व्यय के० नवा पर्यायनुं विणसवं अने ध्रुव के० नित्यपणो ए तीन परिणमनपणें सर्वदा जे परिणमे तेने द्रव्य कहियें. एटले तेहिज गुण कारणकार्य बे धर्मै समकाले परिणमे छे. कारण विना कार्य थाय ज नही अने कार्य करे नही ते कारण पण समज नहीं, जे उपादानकारण तेहिज कार्य थाय छे ते कारणतानो व्यय अने कार्यतानुं उपजवं समकालें थाय छे बली कारणपणो समये नवो नवो छे अने कार्यपणो पण समये समये नवो नवों छे ते माटे कारणपणानो पण उत्पाद व्यय छे अने कार्यपणानो पण उत्पाद व्यय छे अने गुणपिंडपणे द्रव्याधारपणे ध्रुव छे एवी परिणतियें परिणमे ते सत् के० छतिवंत द्रव्य जाणवो एटले ए लक्षण ते द्रव्यास्तिकनय तथा पर्यायास्तिकनय ए बे भेला लइने करयो छे. जे ध्रुवपणो ते द्रव्यास्तिकधर्म ग्रह्यो छे अने उत्पाद व्यय ते पर्यायास्तिकधर्म ग्रयो छे ते माटे ए लक्षण संपूर्ण छे, ए तत्वार्थकारकनुं वाक्य छे.
तथा वली बीजुं लक्षण तवार्थमां ज कां छे. एक sarai aani aatyणे वर्त्तमान ते गुण अने पर्याय ते गुणनुं कारणभूत द्रव्यनुं भिन्न भिन्न कार्यपणे परिणमे द्रव्यगुण एबेहुने स्वाश्रयीपणे परिणमन ते बे छे जेमां ते द्रव्य कहिये
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