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गुणटाणाअधिकार,
एक समय उत्कृष्ट अंर्तमुहूर्त्तनी छे. ९ दशमो गुणठाणो सूक्ष्म संपराय इहां सूक्ष्म संजलनो लोभ उदय होवे. इहां बे जातना जीव पामीये, उपशम श्रेणि तथा क्षपक श्रेणि करमने उपशमावे द्वेषखपावतो जाए क्षपकश्रेणि कर्म मोहनीने खपावे, ए गुणठाणे एक सूक्ष्म संपराय चारित्र होवे, ध्यान शुक्ल होवे परिणाम निरमल होवे, ते अवेदी छे एहनी स्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट अंर्तमुहूर्त्तनी छे. १० इग्यारमो गुणठाणो उपशांतमोह तिहां जे जीव उपशमश्रेणि आठ्ठमेळतो बोलना परणामशांत मोह कर्मनी प्रकृतिउपशमावतो जाय, तेहनो उदारथीज उपशमावानो छे ते नवमे आवी मोहप्रकृति उपशमावी दशमे लोभ उपशमावीने कषायना उदयरहीत छे ते इग्यारमे आवे ते यथाख्यात चारित्र पामे, एहने चोवीस संपरायकी क्रिया उतरी एकइरियावहिकी क्रिया रहे. प्रकृति तथा परदेश ए बे बंध रह्या छे हेतु न बांछे, बंब एक सातावे दनीनो छे, ध्यान शुक्छे छ गुणठाणे जे जीव मरण पाम्या पछी चोथे गुणठाणे आवे ते देवता लवसत्तमीया थाए, एकावतारी थाए, अथवा कोइक जीव अगीयारमे गुणठाणे उपशांत जहा ने जई पाछो पडे ते इग्यारमाथी दशमे आवे दशमाथी नवमे आवे नवमेश्री आटमे आवे, आटमेथी सानमे आवे सातमेथी ने आवे, इहांयी पालो पडे नचढे तो पालो पांच गुणठाणे आवे, पांचमाथी चोथे आवे, जोक्षायक समकिती होए तो चोथे गुणठाणे के अने उपशम समकिती होए तो चोथाथी पडी बीजे सास्वादन गुणठाणे थईने पहेले मिथ्यात्व गुणठाणे आवे, कोई एक जीव अंर्तमुह रहे, कोइक जीव देश ओगोअर्ध पल परावर्त्त मिथ्यात्वीपणे रहे. पछे
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