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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिमापुष्प पूजासिद्धि. ९९९ नाणुन्ना ओजिणवरेहिं ॥ १ ॥ एहनो अर्थ गीतार्थ होय ते पोते विहार करे अथवा गीतार्थनी निश्राये विहार करवो एथी तिजो विहार अरिहंते आज्ञा दीधी नथी ते माटे तुमे किस्या गीतार्थनी निश्राये विहार करो छो, तथा योग उपधानवहीने सिद्धांत भणे तेपण श्रावक आचारांगादिक सूत्र भणे नही ते निशीथमां कह्यो छे जे भिक्खुअन्नत्थीयं वागारत्थियंवावायणं वायजत्तं साइज्जति तस्सचोमासीयपरिहारठाणं जे ग्रहस्थने सूत्र वंचावे अथवा वांचताने अनुमोदे तेहने चारमासनो पाल्यो चारित्र जावे तथा प्रश्न व्याकरणसूत्रे अहकेरिसी यं पुणसवनुभासियां जत्थदवेहिंगुणेहिंपज्जवेहिं कम्मे हिं बहुविहेहिं आगमेहिं नामरकाय निवाय उवसग्ग तद्वि समास संधिपद जोग उणादि की रियावी हीणसर धाउ सर विभत्ति बन्न जुत्तं भासियवं तथा अनुयोगद्वारे ७ नय ४ निक्षेपाकाल तिन, लिंग तीन, जाण्या पछी उपदेश देवो ते मारग नथी इत्यादिक अनेक बोल छे. ते गीतानी सेवनाथी पामीये इतिभद्रं ॥ जे केइ श्री जिनप्रतिमानी पूजा मध्ये फूल पूजानी शंका करे तेहने कहीये जे श्री रायपसेणीसूत्रे १७ भेद पूजाना पाठ छे. पुप्फारुहणं १ मालारुणं २ तहवन्नयारुहणं ३ तथा पुप्फपगिहपुप्फपगरं एतली पूजा फूलनी छे ८ तेमाटे पूजा फूलनी ते प्रमाण छे. तथा श्रीभगवतीमूत्रे पण सूरीयाभनी पेरे पूजानी भलामणना पाठ अनेक छे. तथा ज्ञातासूत्रे द्रौपदीने अधिकारे १७ प्रकारी पूजाना पाठ छे. तथा समवायांगसूत्रे चोत्रीस अतिशयने अधिकारे " जलय थलय भासुरसद्भवन्नणंजाणुस्से हप्पमाणमित्तेणं पुप्फपूजोवयारकरेइ इत्यादि पाठ छे" इहां समवायांग सूत्रमे देवता मनुष्यनो नाम को नथी. तथा श्रीउववाईसूत्रे For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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