________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(५२) व्यमा छे, पण बीजा पांच द्रव्यना नथी. "गुणपर्यायवद्र्व्यम्-" द्रव्यथी अभेदपणे गुणपर्याय होय तेने द्रव्य कहे छे तथा स्वधर्मनो आधारवंतपणो तेने क्षेत्र कहे छे, अने उत्पाद व्ययनी वर्तना तेने काल कहे छे, तथा विशेष गुण परिणति, स्वभाव परिणति, पर्याय प्रमुख ते स्वभाव कहीए. __अत्र एक-भेद स्वभाव, बीजो-अभेद स्वभाव, त्रीजो-भव्य स्वभाव चोथो-अभव्य स्वभाव अने पांचमो-परम स्वभाव, ए पांच स्वभाव जाणवा. तेमां द्रव्यना सर्व धमेने पोतपोताना स्व स्व कार्य करवेकरी भेद स्वभाव छे, अने अवस्थानपणे अभेद स्वभाव छे. अणपलटण स्वभावे अभव्य स्वभाव छे. तथा पलटण स्वभावे भव्य स्वभाव
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only