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(२७) वर्गणाओ लागी छे, तेथी जीवना ज्ञानादिक गुण दबाई गया छे. माटे जीव थकी पुद्गल द्रव्य अनंत गुणा जाणवा. ते पुद्गलरुपी छे. अचेतन छे. सक्रिय छे. पूरणगलन छे. जीवे अनंती पुद्गल परमाणुआ रुपी अंठ वारंवार ग्रहण करी, तोपण तेथी तृप्ति पामतो नथी. पारकी वस्तु पोतानी मानी बेठो छे. अहो जीव द्रव्य अनंत शक्तिवाळू छे तेने पुद्गलद्रव्ये पोताना कबजामां लीधुं छे, तेने संगे राच्यो माच्यो छे, माटे परवस्तु उपरथी मोह उतारवो, अने पुद्गल द्रव्य अन्य वस्तु जाणी तेनाथी दूर रहेQ ए सार छे.
पूर्वे कहेली आठ वर्गणा जीवने अनादि काळथी लागी छे. औदारिक वैक्रिया आहा
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