________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१९)
भेद थाय छे, ते सर्वे मूर्तिरुपे जाणवा. व्यवहार नयथी पुद्गल द्रव्यना अनंता परमाणुआ मळी खंध बने छे, त्यारे नजरे दीठामां आवे छे, माटे एने मूर्त कहेवाय छे. छ द्रव्यना स्वरुपमां मूर्त अमूर्तनो विचार कह्यो. हवे समदेशी अने अप्रदेशीनो विचार कहे छे.
छ द्रव्यमां पांच द्रव्य सप्रदेशी छे, अने एक कालद्रव्य अप्रदेशी छे, धर्मास्तिकाय असंख्यात प्रदेशमय छे. अधर्मास्तिकाय असंख्य प्रदेशमय छे, आकाश द्रव्य अनंत प्रदेशी छे. जीवद्रव्य असंख्यात प्रदेशी छे. जीव द्रव्य अनंता जाणवा. तथा पुद्गल परमाणुआ ( उपचारथी ) अनंत प्रदेशी छे,
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only