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(२२३) खपुद्गलांस्तु मिथ्यात्वे संक्रमयति न तु मिश्रे॥
प्रवर्धमानपरिणामी सम्यग्दृष्टिजीव, मिथ्यात्व पुद्गलोने आकर्षी सम्यक्त्वमां अने मिथ्यात्वमा संक्रमावे छे. सम्यग्दृष्टि जीव, मिश्र पुद्गलोने सम्यक्त्वमा संक्रमावे छे अने मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्वमां संक्रमावे छे तथा मिथ्यादृष्टि, सम्यक्त्व पुद्गलोने मिथ्यात्वमा संक्रमावे छे पण मिश्रमां नहीं. मिच्छत्तंमि अखीणे-तिपुंजा सम्मदिट्रिणो नियमा खीणमि उमिच्छते-दुएगपुंजी व खवगोवा ॥
मिथ्यात्व अक्षीण थये छते सम्यग् दृ
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