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( १९८)
त्राज्ञा शुद्धा क्रियैव, तस्या एव परगतसम्यक्त्वोत्पादकत्वेन सम्यक्त्वरूपत्वात् तदवच्छिन्नं वा सम्यक्त्वं कारकसम्यक्त्वं । एतच्च विशुचारित्रिणामेव ॥ १ ॥
सूत्राज्ञा शुद्धक्रिया तेज कारक सम्यक्त्व छे ते क्रियानेज परगत सम्यक्त्वोत्पादकपणा वडे सम्यक्रूपत्व छे, ए हेतु थकी तदवच्छिन्नसम्यक्त्वने कारकसम्यकूत्व कहे छे. विशुद्ध चारित्रवतोने कारकसम्यक्त्व होय छे.
रोचक सम्यक्त्व - रोचयति स
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