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(१८०) जे प्राप्त थाय छे तेने निसर्ग सम्यक्त्व कहे छे अने गुरु उपदेशथी जे सम्यक्त्व थाय छे तेने अधिगम सम्यक्त्व कहे छे. न्याय्यश्चसति सम्यक्त्वेऽणुव्रतप्र. मुखग्रहःजिनोक्ततत्त्वेषुरूचिः शुद्धसम्यक्त्व मुच्यते ॥ अंतोमुहुत्तमितंपि, फासिय हुज्जजेहिं सम्मत्तं तेसिंअवठ्ठपुग्गल-परियट्टोचेवसंसारो॥ सम्मदिठीजीवो,गच्छइनियमाविमाणवासीसु जइनविगयसम्मत्तो, अहवनबद्धाउओ पुचि ॥
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