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ज्यां सुधी आत्मानुं शुद्ध स्वरुप ओ. ळखातुं नथी त्यांसुधीशुद्ध सद्दहणा थती नथी.
श्री जिनेश्वर कथीत वाणी सांभळवाथी आत्मानुं स्वरुप यथातथ्य समजायछे, माटे ज्ञाननो घणो खप करवो. ज्ञान विना जीव अजीव आदि पदार्थनुं सम्यक् ज्ञान थतुं नथी. आत्मा नित्य केवी रीते छे अनित्य केवी रीते छे उत्पाद व्यय अने ध्रुव शी वस्तु छे तेनुं ज्यां सुधी ज्ञान थतुं नथी, त्यां सुधी जीव सम्यक् वस्तु जाणी शकतो नथी, अने हेय ज्ञेय अने उपादेय पण जाणी शकतो नथी. सम्यक् वस्तुना ज्ञान थकी सम्यकत्त्व प्राप्त थाय छे. माटे ज्ञाननी आवश्यकता छे.
ज्ञानना पण बे भेद छ ? व्यवहारज्ञान २ निश्चयज्ञान.
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