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(१७१)
दयमां शुद्ध श्रद्धा राख. श्रद्धा धरनार अनुक्रमे मोक्षस्थानक पामे छे. जीवाजीवा पुण्णं, पावासव संवरो य निज्झरणा, बंधो मुख्खो य तहा, नव तत्ता हुंति नायव्वा - जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध, अने मोक्ष, ए नवतत्त्व जाणवा योग्य छे.
हेया बंधासव पुण्ण पावा, जीवाजीवाय हुंति विन्नेया, संवर निज्झर मुखो, तिन्निवि ए उवादेया ॥ १ ॥ बंध, आस्रव, पुण्य अने पाप ए चार तत्त्व त्याग करवा योग्य छे, जीव अमे अजीव तत्त्व जाणवा योग्य छे, संवर,
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