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(१६८) घणुं दुर्लभ छे. चिंतामणि रत्न पाम, ते सहेल छे पण स्याद्वाद रीते आत्मज्ञान थq मुश्केल छे. मारो आत्मा शाश्वतो छे, पण कर्मना प्रपंचथी चतुर्गतिरूप संसारमा भटके छे. हे चेतन!!! तुं ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप रत्नत्रयी सहित छे. धन, कुटुंब, इंद्रिय, शरीर, लेश्या अने योग, ए सर्व परवस्तु छे. एमां तारुं कंइ नथी. जीव पोते धन, पुत्र, अने स्त्रीना मोहमां फसाइ तेने पोतानुं मानतो अनंत दुःखनी परंपरा पामे छे. संयोगी वस्तु, धन, अने कुटुंब, ए सर्व ताराथकी अत्यंत भिन्न छे. हुं चेतन छु, ए पुद्गल अचेतन जड छे. तेनी संगतिथी हुं पण जड जेवो थयो छु. हुं अमूर्त छु, अने पुद्गल मूर्ति छे. हुं शुद्ध निर्मल छु.
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