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(१६५)
छे, माटे ए आठ मदनो त्याग कर. कर्मवस्तु थकी तुं जुदो छे. तुं अनंत रत्नत्रयीनो भो - क्ता छे, तुं अरूपी छे, अज छे, अविनाशी छे, अकषायी छे, अरोगी छे, अमायी छे, अवेदी छे अने अछेदी छे, इत्यादि संवरभावना जाणवी.
९ निर्जर भावना.
९ निर्जरा - जेनाथी कर्म निर्जरे ( दूर थाय ) तेने निर्जरा कहे छे. हे चेतन !!! तुं निर्जर भावनाने हृदयमां धारण कर, अने व्रतपञ्चखाणनो आदर कर. ज्ञान सहित क्रिया करवी ते निर्जरानुं कारण छे. बारभेदे तपश्वर्या करवाथी निर्जरा थाय छे. निकाचित कर्म पण तप थकी दूर थाय छे. सुकोशल
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