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(१५६)
अने असह्य दुःख भोगवे छे. संसार बळता अग्नि (दावानळ ) समान छे. उत्तम पुरुषोए चारित्र ग्रहण करी संसारनो त्याग कर्यो छे. अरे हुं महा पापी संसारमा राच्यो माच्यो छु. हुं हवे दुःखमय संसारथी क्यारे छुटीश. आ प्रमाणे विचारणा ते संसारभावना जाणवी.
४ एकत्व भावना. जीव एकलो आव्यो छे, अने अहींथी एकलो बीजी गतिमां जाय छे. धन धान्यादिक परिग्रह, पुत्र, अने कलत्र, वगेरे साथे आववानुं नथी. कुटुंबनुं पेट भरवा सारु हिंसा, असत्य, चोरी-कूड कपटथी हुँ लक्ष्मी पेदा करुं छु, पण तेथी थएला पापमांथी कोइ भाग लेनार नथी. क
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