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( १३२)
छे, तेम माणस रौद्रध्यानरूप अंधारी अघोर रात्रीमां अज्ञानी बनी जाय छे. अघोर रात्रीमां जेम चोरोनो प्रचार थाय छे, अने तेओ खातर पाडे छे, तेम रौद्रध्यानरूप अघोर रात्रीमां राग, द्वेष, मोह, माया अदेखाइ, निंदा, क्लेश, चाडी, अने असत्यरूपी चोरो, आत्मानी अनंत ऋद्धि लुंटे छे. रौद्रध्यानमदिरा अत्यन्त बेभान कर्ता छे तथा अनंत दुःखनो हेतुभूत छे. हे चेतन !!! तुं आपोआप विचार के रौद्रध्यानरूप शत्रु तने हितकर्त्ता छे के अहितकर्ता छे ? हितकर्ता तो कदापिकाले कही शकाय नहीं, अने अहित करनार तो प्रत्यक्ष देखवामां आवे छे छतां तुं केम तेनो संग छोडतो नथी ? शुं ? तने कंइ पैसा बेसे छे ना तेम
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