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४ धन, धान्य, खेत्र, वास्तुं, रूप सुवर्ण कूप अने द्विपद नव जातनो परिग्रह वधारवानी घणी तृष्णा होय अने तेनी वृद्धिना उपायोनुं चितवन करे, कुटुंबना माटे गमे तेवुं पाप करे वा घणो परिग्रह मळवाथी अहंकार करे, अने जगत्ने तृणवत् माने. तथा परिग्रह रक्षण करवानी चिंता ए आदि परिणामने परिग्रहानुबंधी रौद्रध्यान कहे छे.
ए चार प्रकारना ध्यान थकी जीव नरकनी गतिमां जाय छे. माटे भव्यात्माओए चार प्रकारनुं रौद्रध्यान ध्यानुं नहीं. महा रौरव भयंकर दुःखनुं कारण रौद्रध्यान छे. रौद्रध्यान पांचमा गुणठाणा सुधी छे. छडे गुणठाणे पण एक हिंसानुबंधी रौद्रध्यानान परिणाम कोइक जीवने होय छे. रौद्र
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