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(११५) तेथी तेने जे वेदना थाय छे, तेथी अनंतगुणी वेदना निगोदिया जीवने एक समयमांज थाय छे. भव्य जीवने निगोद प्राप्त थवानुं कारण अज्ञान छे. माटे तेहनो त्याग करवो ए हितशिक्षा छे. सर्व प्रमेयनो प्रमाता आत्मा ते पोताना ज्ञान गुणे प्रमेयनो प्रमाण करे छे. ए प्रमेयत्वपणो कह्यो.
५. सत्व कहेतां सत्वपणो ते छ ए द्रव्योमा छे. द्रव्यमां एक समयमा उत्पादव्यय थाय छे, अने तेज समयमां स्थिरपणे वर्ते छे. उत्पादव्यय, अने ध्रुवपणो तेही ज सत्पणो छे. “ उत्पाव्ययध्रुवयुक्तं-सत् इति तत्त्वार्थ वचनात् " तेने विस्तारथी बतावे छे.
६ धर्मास्तिकायना असंख्याता प्रदेश
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