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________________ પ अने शोकसमुद्रमां बूडतां फरीवार महाराज साहेब. जीनी आंगळीरूप प्रवहणे जणायुं के आ वखत मारो अंत समय छे. माटे छाती द्रढ करी धर्म संभळावत्रो ते तमारु काम छे. मुनिश्री सुखसागरजी पण नवकार देवा लाग्या. अहो ! नवकारनुं केवुं माहात्म्य छे के चउद पूर्वी पण मरण समये नवकारनुं स्मरण करेछे. माहाराजजीए पाछा संघ तरफ आंगळी करी जणान्युं के सकल संघ संपथी चालजो. संघमां लडाइ टंटा घालशो नही, ज्यां सुधी तमारा गाममां संप छे त्यां सुधी सारु रहेशे . आ वखते नगरशेठ वसताराम नेमीदास पण बहु उदास थइ गया. साEat शीवश्रीजी तथा हरखश्री आ वखते हाजर हतां. प्रबंध लखनार मने महाराजजीए जणायुं हतुं के
SR No.008643
Book TitleRavisagarji Jivan Charitra Shok Vinashak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherBuddhisagar
Publication Year
Total Pages128
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & History
File Size3 MB
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