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संसारनी उपाधि रहेती नथी. दररोज संजम मार्गमा प्रवृत्त धवाथी घणां कर्म नाश पामेछे. तीर्थंकर भ गवान पण दीक्षा अंगीकार करेछे. दशार्णभद्र राजाए दीक्षा अंगीकार करवाथी इंद्र हाय. देवताओ घणा शक्तिमान् छे पण तेमनाथी दीक्षा लेवाती नथी. माटे देवताओ पण दीक्षा लेनारने नमस्कार करे छे संजम मार्ग वहन करनार जीव अनुक्रमे शिघ्र मोक्ष लक्ष्मीने प्राप्त करशे, मुनिपणुं अने श्रावकपणामां मेरु सरसव जेटलुं अंतर छे. क्यां स्त्री, पुत्र, धनमां आसक्त काचुं पाणी पीतुं, अब्रह्म सेवन करवुं वनस्पतिनी विराधना पापारंभ पाप व्यापार कपट का रण ग्रहस्थावास छे. तेनो त्याग करवाथी संसार घंटे छे. अने आत्म सुख पामी शकाय छे. तीर्थकर भ