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(५३) पांच समिति त्रण गुप्तिनो, उत्तम जगमां योग, जे योगे रमतां थकां, आतम होय अयोग. ॥२॥ अपवादे समिति कही, उत्सर्गे त्रण गुप्ति; गुप्ते गुप्ता मुनिवरा, पामे क्षायिक शक्ति, ॥३॥ ___ सांभळजो मुनि संयमरागे-ए राग.
प्रभु महावीर जिन उपदेशे, समिति गुप्ति साचीरे, असंख्य योगनी प्रवचन माता, रहेशो तेमां राचीरे ॥ प्रभु ॥ १ ॥ज्ञानने नक्ति कर्म उपासना, हठयोगादिक योगोरे, त्रण गुप्तिमां सर्व समाता, जेथी रहे नहीं लोगोरे ॥ प्रभु॥ २ ॥ गृहस्थ त्यागी बेने हितकर, योग क्षेत्र प्रदातारे, सिया सिजशे सिद्धे तेओ, पाळी प्रवचन मातारे ॥ प्रभु ॥३॥ भावथको त्रण गुति साधे, मुक्ति अनुभव आवेरे, द्रव्यने नावथकी निज मुक्ति, सहजानंद सुहावरे ॥ प्रभु ॥ ४ ॥ रागद्वेष संकल्प विकल्पो, दूर थतां मन गुप्तिरे, निर्विकल्प स्वभावे समाधि, केवल प्रगटे शक्तिरे ॥ प्रभु ॥ ५॥ आतम ज्ञानोपयोगे रहेतां,
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