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(२८) एकतानथी, सर्व शक्तियो उल्लसेरे, बुद्धिसागर आतमा, सूरिपद गुणथी विकसेरे. आतम ॥२॥
स्वपरशास्त्ररहस्य निवेदिनः चरितपञ्चविधाचरणानपि, जिनसुधर्मधुरीणतया स्थितान्, सकल सूरिवरान्परिपूजये ॥ ॐ है। श्री परम० स्वाहा.
चोथी उपाध्याय पद पूजा. पंचविंशति सद्गुणे, उपाध्याय भगवंत, भणे भणावे शास्त्रने, पूजो वंदो संत० ॥ १॥ गुणो अने आचारथी, आत्म शुद्धि करनार, उपाध्याय जगमां जया, युवराजा जयकार ॥२॥ उपाध्यायन। भक्तिथी, प्रगटे दर्शनज्ञान, वाचंयम पाठक नमो, पूजो धरी एक तान० ॥ ३ ॥
सिद्धचक्रनी सेवा को जे. ए राग.
उपाध्यायनी सेवा कीजे, विद्यमान सुखकारीजी, विद्यमान पाठकनो भक्ति, करतां तरे नरनारी, भविजन सेवोजी, त्यागी सर्व प्रमाद, ल्हावो लेवोजी० ॥ १॥ अंग उपांगना पाठकज्ञानी, भणे भणावे
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