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(१९) श्री अरिहंत पद गाइए, भ्याइजे सुखकाररे; अरिहंत जेवा थाइए, दोष रहे न लगाररे. श्री अरिहंत० ॥१॥ नमण उवण द्रव्य भावथी, अरिहंत गातां ध्यातारे; बातम अरिहंत पद वरे, कर्म सकल दूर जातारे. श्री अरिहंत० ॥२॥ वीश स्थानकने सेवतां, द्रव्य भावथी भावरे; तीर्थकर कर्म बंध ए, पूर्व त्रीजा भव थावेरे. श्री अरिहंत० ॥३॥ वींश स्थानमय आतमा, भावथी हर्षोल्लासेरे; उज्ज्वल शुभ परिणामथी, अर्हत् पदवी प्रकाशेरे. श्री अरिहंतः ॥ ४ ॥ अरिहंत नामना जापथी, स्थापनामां प्रभु ध्यावरे, द्रव्य भाव चे नेदची, बातम जिनवर आवेरे. श्रीअरिहंत० ॥ ५॥ तीर्थकर नाम कर्मने, बातम ज्यारथी बांधेरे, द्रव्य तीर्थकर त्यारथी, क्षीण मोही गुण साधेरे. श्री अरिहंत० ॥६॥ जन्ममकी त्र ज्ञान छे, मति श्रुत अवधि प्रमाणोरे, चोधुं दीक्षा ग्रहे थके, मन पर्यव दिव बालोरे.धी अरिहंत ॥७॥ण स्थानक योगायकी वाल्मा
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