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(१०) हवे चैत्यवन्दन करवू तेनि विधि. वीर आसने बेसी बे हाथ जोमी प्रभुजी सामी दृष्टि राखी 'इच्छाकारेण संदिसह नगवन् चैत्यवन्दन करूं' इच्छं एम कही 'सकळ कुशळवा' कही जगचिन्तामणि कहे. पली जं किंचि नमथ्थुणं जावन्ति चेइयाई, जावन्त केविसाहु, नमोऽर्हत् कही उवसग्गहरं कहेवू, पनी आनवमखंमा सुधी अर्धा जयवीयराय कहेवा. आर्ह सुधि कही पली उभा थइ स्नात्रीआए कलश हाथमां लइ प्रभुजीना माबा अंग तरफ उन्ना रहेढुं पछी विधि करनार विधि भणे.
राग उपरनो. छप्पन दिक्कमरी तीहां आवे, प्रभु जन्मोत्सव हेते; प्रभु माताने प्रणमे प्रेमे, सूतिकर्म संकेते. आठे दिक्कुमरी वायुथी; कचरो करती दूरे, आठे कुमरी गंधोदकथी, सुगंध जलने पूरे ॥१॥ था कुमारी कलशा धारे, दर्पण आठे धारे; आठ कुमारी चामर
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