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( ३५६ ) जैनधर्म श्रद्धा धरो, सर्व संघनी सेवः प्रभु महावीर
देवनी, पूजानी ए टेव ॥ २ ॥ प्रभु महावीर उपदिश्यां षड् द्रव्यो नव तत्व; सत्य गणीने वर्त; ए. प्रभु पूजा सच ॥ ३ ॥
निशानी कहा बतावुंरे. ए राग.
प्रभु महावीर तुं प्यारोरे, सर्व विश्व आधार. प्रभु० ॥ १ ॥ तुज हृदयंथी प्रगटियोरे, जैनधर्म छे सत्य; सफल संघनी सेवनारे, तुज पूजानुं कृत्य. प्रभु० ॥२॥ केवलज्ञानी तुं प्रभुरे, तुज वचनानुसार; वर्तवुं पुष्पनी पूजनारे, घरवा धर्माचार प्रभु ॥२॥ मुज मन मन्दिरमां वसोरे, क्षण पण थाओ न दूर; तुज विरहो न खमी शकुंरे, रहेशो हजराहजूर. प्रभु० ॥ ३ ॥ नय निक्षेप प्रमाणधीरे, जैनागम अनुसार; प्रभु तुज ध्यान समाधिथीरे, प्रगट्यो रस जयकार. प्रभु० ॥ ४ ॥ अनेकांत सत्तामयीरे, अनंत
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