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(३३७)
कलश. गाइ गाइरे पंच परमेष्ठी पूजा गाइ, ओगाणश अव्योत्तर अक्षयत्रीज, चढते प्रहरे रचाइ; शांति तुष्टि पुष्टि सिद्धि,-देनारी सुखदाइरे. पंच. ॥ १॥ प्रभु महावीर पट्ट परपंरा, तप गच्च जग सुखदायी जगगुरु हीरविजय सूरिराजा, सहुगच्छमाही सवारे. पंच० ॥२॥ सागर शाखा पट्ट परपंरा, रविसागर गुरुराजा; सर्व मुनि गणना शिरताजा, मुनि गुणगणनी माझारे. पंच. ॥ ३॥ रविसागर शिष्यगुरु सुखसागर, शांत दांत सुखदायी; गुरुकृपाने आशीर्वादे, बातम स्थिरता पाइरे. पंच. ॥४॥ पंच परमेष्ठी पूजा रची शुभ, आनंद मंगलदायी; बुद्धिसागर ऋद्धि वृद्धि, कीर्ति जयगुण छायोरे. पंच ५॥
* मुनिपद पूजार्थ० ज• य. स्वाहा.
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