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( ३२३ ) प्रगटे घट लब्धि; बुद्धिसागर आनंद ऋद्धि. महा
वोर ॥ ११ ॥
य० स्वाहा.
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ॐ ह्रीं श्री परम० ध्यानयोग पूजार्थ, जसं ०
चतुर्थी समता योग पूजा.
समताथ शिव संपजे, आठ कर्म दूर जाय; समता प्रगव्या वण क दि, कोइ न मुक्ति पाय. ॥१॥ सर्व योगशिरोमणि, समतायोग महान्, राग रोष
विषमता, त्यजे स्वयं भगवान् ॥ २ ॥ सर्वधर्म दर्शन विषे, समभावे छे मुक्ति; समता दिलमां धारीए, सर्वयोग वम रोति ॥ ३ ॥
वगडानो वाशीरे मोरशिद मारियो ए राग.
प्रभु महावीर समतागुणना दरियारे, रागने रोष विषमता परिहरी; समता गुणथी भरिया जोवो तरियारे, ममताने त्यागेरे समता छे खरी. समताने धारेरे शिवसुख थाय छे, ममता ने अहंता दूरे जाय
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