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(३१६) न रुचे, रुडा प्रगटे विचारजो; योगनी दृढ नूमिका एवी, दंभतणो परिहार. योगने. ॥ ९॥ अनन्य विषगरलनी निवृत्ति, तद्धेतु शुभ थायजी; समकित पूर्वक ज्ञानथो अमृत, शुभ अनुष्ठान सुहाय. ॥१०॥ योगनी पूर्व सेवा योगनूमि, चरमावर्ते पायजी; बुद्धिसागर योगना योग्य ज, नरनारी ते गणाय. योग. ॥ ११ ॥
ॐ ह्री श्री परम पुरुषाय, परमेश्वराय, जन्म जरा मृत्यु निवारणाय, योगभूमिका सेवार्थ जलं, चंदनं, पुष्यं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, यजा महे स्वाहा ॥
प्रथमा अध्यात्मयोग पूजा ॥ प्रभु वचनानुसारथी, तत्त्वनी चिंता थाय; गृही. त्यागी व्रत युक्तने, मैत्र्यादि भाव सुहाय. ॥ १॥ बातमज्ञानने यात्मनी, शुद्धिनुं अनुष्ठान, द्रव्यभाव अध्यात्मनो, योग जलो गुण खाण. ॥२॥
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