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( २८२ )
॥ ३ ॥ गुरुथी सिद्धता संपजे, गुरु प्रभुने जणावे; निमित्त गुरुथी श्रात्मनी, गुरुता जवी पावे. श्रातम. ॥ ४ ॥ गुरु सेवा भक्तिवमे, थाती हृदयनी शुद्धि; आतम ज्ञान ज संपजे, नवक्षायिक ऋद्धि. आतम ॥ ५ ॥ गुरुथी तमरस मळे, जमरस टळे चांति; गुरुथी आतमरस लह्यो, मळी आतम शांति. आतम. ॥ ६॥ अनुभव फलधी पूजिया, गुरुजी जयकारी; बुद्धिसागर सद्गुरु, प्रभु विश्वोपकारी.
आतम ॥ ७ ॥
ॐ हे परमप्रभु परब्रह्म परमात्ममहावीर तीर्थंकरदेव पट्टपरंपरवर्त्ति सद्गुरुचरणानुनव फल पूजार्थ फलं, य. स्वाहा ॥
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कलश.
गुरु पूजा गाइ गुणकारी, मंगलदायी शिवसुख कारी. गुरु याधि व्याधि उपाधिहारो, गुरु पूजाथी तरे नरनारी.. गुरु ॥ १ ॥ श्रगणिश अव्योतरनी
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