________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२७६) जापथी, बातमशुद्धि थाय; द्रव्यभावथी धूपनी, पूजा छे शिवदाय. ॥३॥
सारंगराग. रीझीए रीझीए रीझीए, गुरुनाम जपो दिल रीझीए; गुरुसंगीरसिया थैरागे, बातमरसने पीजीए. गुरु. ॥१॥ गुरुना द्वेषी नास्तिकजननी, संगति क्यारे न कीजीए; गुरुना रागी भक्तनी संगे, आतमरसने लीजीए. गुरु. ॥२॥ समकिती चारित्री गुरुपर, शंकादि न धरीजीए; कडवी शिक्षा अमृतसरखी, मानी क्यारे न खीजीए. गुरु. ॥३॥ आतम सर्व गुरुने निवेदी, गुरुभक्तिरस पीजीए; गुरुनिन्दक प्रतिपक्षी वचनपर, विश्वास क्यारे न दीजीए, गुरु. ॥४॥ गुरुनाम जापनी धूपपूजाथी, दुर्गधमोह हरीजीए; बुद्धिसागरसद्गुरुजापे, प्रभुपद सहेजे वरीजोए. गुरु०॥५॥ ॐ ही श्री अँई गुरुपद पूजार्थ धूपं यजामहे स्वाहा.॥
For Private And Personal Use Only