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( २५८ )
॥ मेतारज मुनिवर धन्य धन्य तुम अवतार ॥
मरुदेशे शुभ पाली नगरे, श्रावक कुलमांही चंद; श्रेष्टी राघवजी गुणवंता, पत्नी माणिक गुणवंत; तस कुखे जन्म्या रवचंद पुत्र उदार ॥ १ ॥ अनंत पुण्ये श्रावक कुलमां, जन्म जवोनो थाय; अनंत पुण्ये संत समागम, धर्मरुचि प्रगटाय; श्री जैन धर्मनो जगमां छे आधार ॥२॥ मात पितानी साथै याव्या, आजीविका हेत; नेमिसागर गुरुजी मळिया, पूर्व पुण्य संकेत; शुभ साधु संगति भवी जीवने हितकार. ॥ ३ ॥ साधु संगे देवगुरुने, धर्मनी श्रद्धा थाय; मिथ्या बुद्धि झट टळेने, सत्यबुद्धि प्रगटाय. शु. ॥ ४ ॥ गुरु सेवा भक्ति करेजी, विनय धरी बहुमान; बुद्धिसागर सद्गुरु संगे, प्रगटे कोटि कल्याण. शुभ० ॥ ५ ॥
ॐ ह्रीं श्री गुरुपद पूजाय जलं. य. स्वाहा ॥
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