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(२३४) द्वितीयपूजा.
स्नात्र भणावी पार्श्वनु, पूजा कीजे सार; पूजक पूज्यनी पूजना, समजीजे सुखकार. ॥ १॥ बेड पासे वीजीए, चामर चारु उमंग; दर्पण प्रभु आगळ धरो, होवे जयजय रंग. ॥ २ ॥ (सुतारीना बेटा तुने विनवुरे लोल-ए देशी.)
प्रजु पार्श्वजिनेश्वर गावीऐरे लोल, श्री संखेश्वर प्रभु नामजो, तुज नामथी नवनिधि संपजेरे लोल, मनवांछित सिद्धे कामजो; नाम रु९ संखेश्वर पास-रे लोल, मिथ्यात्वदशा दूर थायजो; शुद्ध श्रका हृदय प्रगटावजो. नाम रुकुं..॥ १॥ पूजा वास्तुक दोय प्रकारनीरे लोल, शुभ अशुभ नेद कहायजो; द्रव्य वास्तुकपूजाना ए कह्यारे लोल, तेह हरखे कहुं चित्त लायजो. नाम रुडुं. ॥ २॥ घर महेल करावी तेडियेरे लोल, ब्राह्मण होमादिक वा. सजो; वेद गायत्री मंत्र भणावीएरे लोल, ब्राह्मण
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