________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( २२१ ) कयुं जाण्यं कयुं बनी याबही - ए देशो.
शुभ परिणाम ते जावथी, अक्षत पूजा सारहो जविक; भावरोग दूर टाळवा, औषधसम चित्त धारहो भविक जावपूजा अतिसुख दोए० ॥ १ ॥ हिंसा जूठ चोरी तजो, परनार निरधारहो भविक; तनु धनममता परिहरो, रयणीजोयण अंधकारहो भविक भाव० ॥ २ ॥ दिसिगमननो नियम करो, चौद नियम नित्य धारहो भविक; बत्रीश अनंतकाय तिम, अजक्ष्य बावीस निवारहो जविक. जाव० ॥३॥ कषाय मद विकथा वळी, विषय निद्रा त्यागहो
विक; चित्त संतापना हेतु जे, तेथी न धरीए रागहो भविक भाव० ॥ ४ ॥ अहं मम मोह मंत्रनो, त्याग करो गुणवंतहो भविक; विपरीत मंत्र मनन थकी, या शाश्वत सुखवंतहो जविक भाव०॥५॥ अनंतरत्नत्रयी गुणे, चेतनद्रव्य विचारहो भविक; कर्म विनाशथी संपजे, स्थिति सादि पारहो भविक. भाव. ॥ ६ ॥ अक्षताक्षयसुखमणी, भावपूजा सुर
For Private And Personal Use Only