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फूटी आंख, गाइ गाइ थाक्युं मुख, एम गाडरिया प्रवाहे चालतां पूजानुं अने तेमां कहेवा भावनुं रहस्य समज्याविना आत्मानो आनंदरस प्रगटतो नथी. ज्ञानपूर्वक अने भावपूर्वक पूजाओ भणाववामां आवे छे तो वक्ताओने तथा श्रोताओने अत्यंत आल्हादभाव भक्तिरस प्रगटे के अने ज्ञानावरणीयादि कर्मोंनी निर्जरा थाय छे. आearni प्रभु भक्तिनो समाधिभाव प्रगटे हे तेथी प्रभुनो हृदयमां प्रगट भाव थाय छे. पूजाओ भणाववामां, श्रवण करवामां एकांत भक्तिनुं फल छे तेनो भावार्थ विचारी आत्मोल्लास प्रगटावतां उत्कृष्ट भावे क्षणमां मुक्ति थाय छे, भक्त जैनो आवी उत्तम पूजाओ भणावीने तथा श्रवण करीने प्रभु भक्तिना रसिया बनी आनंद रस पामो. एम इच्छं छं. सं. १९७९ का. सु ११ एकादशी. ॥
गुरुभक्त. लेखक. गांधी आत्माराम खेमचंद, महेता हरिलाल मंगळदास, मु. सानंद.
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