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(१९५) द्वितीया चतुर्विंशतिस्तव पूजा. चोवीश जिनवरने नमो, वंदो प्रजो भव्य, स्तवो नक्ति बहमानथी. ए बीजं कर्तव्य. ॥१॥ चोवीश तीर्थकर प्रभ, वीतराग भगवंत: स्तवतां ध्यातां आतमा, पामे भवनो अंत. ॥२॥ चंद्र समा निर्मल सदा, रविथी अनंत प्रकाश; एवा चोवीश विभु, ध्यातां आत्मविलास. ॥३॥ सागरवत् गंभीर जे, सिद्ध गति दातार; प्रभुमयथै प्रभुने स्तवे, स्वयं प्रभु निर्धार. ॥४॥
हे सुखकारी आ संसार थकोजो मुजने उद्धरे.
ए राग. जग उपकारी चोवीश तीर्थकर मुज मनमाही वस्या, प्रभु जयकारी शुद्धातम उपयोगे अंतर उसस्या, चोविश जिनस्तव नावे करतां, अंतांउपयोगे वरता, घातोको वेगे खरता, नरनारी केवल पद वरतां. जग ॥१॥ एकतान प्रभु साथे जागे,
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