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(१७९) मांहे थाय; नामरूपनिर्मोहथीरे, केवल ज्ञान सुहायहो. जिनवर० आतमः ॥११॥ आतम यातमने दियेरे, प्रभु भक्त निज मुत्ति; बुद्धिसागर आत्मनारे, उपयोगे नहि भोतिहो. जिनवर आ० ॥१२॥ ॐ प० मोहनीय कर्मसूदनार्थ धूपं य० स्वाहा ॥
पंचम आयुःकर्मसूदनार्थ दीपपूजा.
सुरनर तिर्यच नरकनु, आयुः चार प्रकार: चार गतिमा आयुथी, तनु स्थिति निर्धार. ॥१॥ चारगतिमा आयुथी, बंधावानु थाय; अनंतजोवन पामतां, आयु बंधन जाय.॥ २ ॥ ज्ञानदोप प्रगटाबीने, पूजो प्रभु जिनराज; अनंत शाश्वत जोवनने, पामो सिद्धे काज. ॥ ३॥
मल्लिजिननाथजी व्रतलोजेरे ए राग. प्रभु महावीरपर धरो प्रीतिरे, टाळो दुष्टाचार अनीति. प्रजु द्रव्य दीपक धरी भाव दीवोरे, प्रगटावी अनंतुं जोवोरे; प्रभु वचनामृतने पोवो. प्रभु
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